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अग्ने॒ यद॒द्य वि॒शो अ॑ध्वरस्य होतः॒ पाव॑कशोचे॒ वेष्ट्वं हि यज्वा॑। ऋ॒ता य॑जासि महि॒ना वि यद्भूर्ह॒व्या व॑ह यविष्ठ॒ या ते॑ अ॒द्य ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne yad adya viśo adhvarasya hotaḥ pāvakaśoce veṣ ṭvaṁ hi yajvā | ṛtā yajāsi mahinā vi yad bhūr havyā vaha yaviṣṭha yā te adya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। यत्। अ॒द्य। वि॒शः। अ॒ध्व॒र॒स्य॒। हो॒त॒रिति॑। पाव॑कऽशोचे। वेः। त्वम्। हि। यज्वा॑। ऋ॒ता। य॒जा॒सि॒। म॒हि॒ना। वि। यत्। भूः। ह॒व्या। व॒ह॒। य॒वि॒ष्ठ॒। या। ते॒। अ॒द्य ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:15» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह जगदीश्वर कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पावकशोचे) पवित्र प्रकाश और (होतः) दान करने तथा (यविष्ठ) अतिशय मिलाने वा विभाग कराने और (अग्ने) सम्पूर्ण प्रजा की पीड़ाओं के दूर करनेवाले (यत्) जो (यज्वा) मेल करनेवाले (त्वम्) आप (हि) निश्चय से (अद्य) इस समय (विशः) मनुष्य आदि प्रजा के (वेः) आकाशगन्ता पक्षी के समान (अध्वरस्य) अहिंसामय के (ऋता) सत्य सुख के प्राप्त करानेवाले यज्ञ में (यजासि) यजन करते हो (यत्) जो आप (महिना) महत्त्व से (वि) विशेष करके (भूः) होवें और (या) जो वस्तुएँ (ते) आपके वर्त्तमान में (अद्य) इस समय हैं, उन (हव्या) देने योग्यों को हम लोगों के लिये (वह) प्राप्त करिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सम्पूर्ण सृष्टि को एकत्रित करता है और जो व्यापक अहिंसा आदि धर्म्म के अनुष्ठान के लिये आज्ञा देता है, वह ही सब से उपासना करने योग्य है ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स जगदीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे पावकशोचे होतर्यविष्ठाग्ने ! यद्यो यज्वा त्वं ह्यद्य विशो वेरध्वरस्यर्त्ता यजासि यद्यस्त्वं महिना वि भूर्या ते वर्त्तमानेऽद्य सन्ति तानि हव्याऽस्मदर्थं वह ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) सर्वप्रजापीडानिवारक (यत्) यः (अद्य) इदानीम् (विशः) मनुष्यादिप्रजायाः (अध्वरस्य) अहिंसामयस्य (होतः) दातः (पावकशोचे) पवित्र प्रकाशक (वेः) विहगस्य पक्षिण इव (त्वम्) (हि) (यज्वा) सङ्गन्ता (ऋता) ऋते सत्यसुखप्रापके यज्ञे (यजासि) यजेः (महिना) महिम्ना (वि) (यत्) यः (भूः) भवेः (हव्या) दातुमर्हाणि (वह) (यविष्ठ) अतिशयेन सङ्गमयिता विभाजको वा (या) यानि (वस्तूनि) (ते) तव (अद्य) ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः सर्वां सृष्टिं सङ्गतां करोति यो विभुरहिंसादिधर्म्मस्याऽनुष्ठानायाऽऽज्ञां ददाति स हि सर्वैरुपास्योऽस्तीति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो सर्व सृष्टीचा मेळ घालतो व अहिंसा इत्यादी धर्माच्या अनुष्ठानाची आज्ञा देतो तोच सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ १४ ॥